मधुबनी नरसंहार

जिस घर के जवान बेटों
के साथ
रंगोत्सव के दिन
खुली सड़क पर
खून की होली खेली
गयी हो,
जिस घर के बाप ने
अपने जवान बेटों को
मूंह पर अबीर की जगह
चिताग्नि के पहले घी
लपेटा हो,
जिस घर में औरतों के
हाथों से अचानक
चूडियां छीन ली जाएं,
सिन्दूर वाले मांग
सूने रेगिस्तान बन जाएं,
उस घर की हालत ना
पूछो,
रोते बच्चे आंखों में चिन्गारी
लेकर जिएंगे,
वो कब तक अपने
हृदय के चित्कार को मन
में पिएंगे,
हे स्त्री ऐसी औलादें
तुम कभी ना जनना
राम की धरती पर
कभी रावण को पैदा
मत करना .