मधुबनी नरसंहार

जिस घर के जवान बेटों
के साथ
रंगोत्सव के दिन
खुली सड़क पर
खून की होली खेली
गयी हो,
जिस घर के बाप ने
अपने जवान बेटों को
मूंह पर अबीर की जगह
चिताग्नि के पहले घी
लपेटा हो,
जिस घर में औरतों के
हाथों से अचानक
चूडियां छीन ली जाएं,
सिन्दूर वाले मांग
सूने रेगिस्तान बन जाएं,
उस घर की हालत ना
पूछो,
रोते बच्चे आंखों में चिन्गारी
लेकर जिएंगे,
वो कब तक अपने
हृदय के चित्कार को मन
में पिएंगे,
हे स्त्री ऐसी औलादें
तुम कभी ना जनना
राम की धरती पर
कभी रावण को पैदा
मत करना .

हैप्पी होली

महेश्वर और उसके दोस्त इस बार कोरोना के कारण होली खेलने बाहर नहीं जा रहे थे। लेकिन उनको पता चला कि उनका एक दोस्त जो मुंबई में रहता है उसे कोरोना हो गया और वह घर नही आ सका है।सभी दोस्तों ने यह निर्णय किया की अलग-अलग समय पर जाकर उनके माता-पिता को मिलेंगे। ताकि उन्हें अपने बेटे की कमी महसूस ना हो।

महेश्वर विमलेश के साथ उस दोस्त के घर पहुंचा।घंटी बजाई तो अंदर से आवाज आई-“कौन?”

“हम हैं आंटी!हैप्पी होली आंटी!”
एक बुजुर्ग महिला बाहर आई और बड़े गौर से देखने लगी ।

“अरे महेश्वर बेटा! आओ आओ लेकिन सतीश तो इस बार आ नहीं सका बेटा!”

“हां जी हमें पता है, लेकिन हम भी तो आपके बच्चे हैं।कह कर उन्होंने रंग, गुझिया और मिठाई के डिब्बे आंटी के हाथों में दिए और उनके पैर छूकर प्रणाम किया।

इतनी देर में अंकल भी निकल आए। “अरे बच्चों तुम लोग बाहर क्यों खड़े हो? अंदर आओ!”कहकर उन्होने दरवाजा खोल दिया।

“तुमलोग हाथ-पैर धो लो और अंदर आकर बैठो। देखो!मैंने बहुत अच्छी गुजिया बनाई है, दही बड़े भी बनाए हैं,लेकिन हम दोनों में से कोई खा नहीं सकता है क्योंकि मुझे तो शुगर है और तुम्हारे अंकल को भी बहुत सी बीमारियां हैं।पर त्योहार है तो बनाना ही था।सतीश आने वाला था पर उसे कोरोना पॉजीटिव आने से ना वो आ सका और हम भी उसके पास नही जा सके।”

आंटी बोलती जा रही थीं।उनके चेहरे की उदासी साफ दिखाई दे रही थी।

“कोई बात नहीं आंटी! सतीश जल्दी अच्छा होकर आपके पास आएगा,तब तक आप हमें अपना बेटा समझें और जब भी आपको जरूरत हो हमें याद कर लीजिए।”

“बेटा जरूरत सिर्फ प्यार और अपनों के साथ की है और कुछ भी नहीं”।अंकल ने महेश्वर का हाथ पकडकर कहा।

आंटी अंदर से गुझिया और दहीबड़े लेकर आई।महेश्वर और विमलेश ने बड़े चाव से खाया और कुछ देर की गपशप के बाद चलने लगे तो आंटी-अंकल ने उनके गालों पर गुलाल लगाया और ढेर सारा आशीर्वाद दिया।

जाते समय में महेश्वर ने देखा कि अंकल और आंटी के चेहरे पर बहुत ही चैन का भाव था और एक अलग ही चमक थी।

(सच्ची घटना पर आधारित लघुकथा)
लेखिका-ऋतुजा सिंह बघेल (रानी)

सुशांत

वो लौट कर नही आएगा,
फिर भी बहन
पूरा कर रही है
उसके ख्वाब को,
वो कभी नही
देखेगा न्याय की
इस लडाई को,
फिर भी दोस्त
पूरा कर रहे हैं
उसके हर सपने को,
बहुत से निर्दोष
लोंगों को निशाना
बना दिया गया है,
और बहुत से लोग
निशाने पर हैं,
फिर भी उसके
चाहने वाले
निडर होकर
लड़ रहे हैं,
क्योंकि वह
अनोखा था,
अलबेला था,
हमारा सुशांत था
करोडों में एक …..
Rituja s baghel

जब जीवन से जंग लड़ना

जब तुम जीवन से जंग लडना

तो जी भरकर लडना

थकना नही रूकना नही

जीवन तुम्हारा है

उसे छीनकर रहना

जब तुम जीवन से जंग लडना

जब तुम जीवन से जंग लडना
तो जी भरकर लडना
थकना नही, रूकना नही,
जीवन तुम्हारा है उसे
छीनकर रहना…
जब तुम जीवन से जंग लडना
तो जी भरकर लड़ना
कर देना उल्टा प्रहार
मत करना मनुहार
हारना मत, थकना मत
सोना मत जागते रहना,

जब तुम जीवन से जंग लड़ना …..
-#ऋतुजा

डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन

विश्व के विभिन्न स्थानों में शिक्षक दिवस अलग-अलग दिनों पर मनाया जाता है।भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है, यह अधिकांश लोगों को पता है फिर भी मैं बताना चाहती हूं कि भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति श्री सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने अपने छात्रों से यह कहा था कि उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाए तब से यह परंपरा प्रारंभ हुई।
डॉ॰ राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है।
डॉ॰ राधाकृष्णन का जन्म चेन्नई के चित्तूर जिले के तिरूत्तनी ग्राम के एक ब्राह्मण परिवार में 5 सितम्बर 1888 को हुआ था। उनके महान दार्शनिक एवं शैक्षणिक उपलब्धियों हेतु देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के द्वारा भारत रत्न की उपाधि दी गई।

किसी व्यक्ति के जन्मदिवस को मनाने का सर्वश्रेष्ठ तरीका यह है कि उसके सर्वश्रेष्ठ गुणों के विषय में बात की जाए तथा उस पर चलने का प्रयास किया जाए।आज हम डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के द्वारा बताई गई कुछ महत्वपूर्ण बातों को बिन्दुवार समझते हैं-

1) सादगी पूर्ण संतोष वृत्ति का जीवन अमीरी के अहंकारी जीवन से बेहतर है।

2)एक शांत मस्तिष्क बेहतर है तालियों की गड़गड़ाहट से जो सांसदों एवं दरबारों में सुनाई देती है।

3)शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है।

4)जीवन बहुत ही छोटा है परंतु इसमें व्याप्त खुशियां अनिश्चित हैं, इस कारण व्यक्ति को सुख-दुख में समभाव से रहना चाहिए।

5)मृत्यु एक अटल सत्य है जो सभी को अपना ग्रास बनाती है।

6) सच्चा ज्ञान वही है जो आपके अंदर के अज्ञान को समाप्त कर सकता है।

7) भारतीय संस्कृति में सभी धर्मों का आदर करना सिखाया गया है।

8)कठिन से कठिन विषय को भी जो अपनी शैली से आसानी से छात्रों को समझा दे वही योग्य शिक्षक है।

9)विषय पर गहरी पकड़ और उपर्युक्त शब्दों का चयन सफल शिक्षक के गुण हैं।

इस प्रकार भारत में शिक्षक दिवस की क्या महत्व है इस को आसानी से समझ सकते हैं डॉक्टर राधाकृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति बने।उनकी विद्वता के आगे विदेशों में भी लोग सर झुकाते थे। आज आवश्यकता है कि डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बताए हुए पद-चिन्हों पर चलकर शिक्षक शब्द की गरिमा को सदा बनाए रखा जाए।

-ऋतुजा सिंह बघेल

नखरीली किरणें

सूरज की नखरीली किरणें
बादलों से मूंह फुलाए,
निकल पडी हैं,
एक दिन का चैन नही
लेने देते!
सूरज से कह रही हैं
कभी तो छुट्टी दो,
अरे कामवालियां भी
धरती पर चार छुट्टियां
ले ही लेती हैं!!
एक दिन ढंग से
सोने भी नहीं देते..
सूरज से उलझ
रहीं हैं.
सूरज मुस्कुराता है,
और कहता है-
अरे भागवान!
तुमलोग नही चलोगी
तो ये सुन्दर फूल कैसे
खिलेंगे!
चिडियों को
दिखाई नही देगा,
और ये सारे असुररूपी
बीमारियों के कीटाणु
मर नहीं पाएंगे,
तुम सो जाओगी
तो यह दुनिया
कभी जाग नही पाएगी,
तुम हो तो मैं
सूरज हूं अन्यथा
मैं क्या हूं…!
ये बादल तो तुम्हारे
गण हैं जो मेरी तपिश
को कम करते हैं..
चलो,मत लडो,
तुमसे ही जगत में
जीवन है और
जीवनदायिनी कभी
सोती नहीं है …
क्रमशः
ऋतुजा सिंह बघेल द्वारा लिखित
(31/8/19) 8:13 AM

मैरवा में ताजिया जूलूस की परंपरा

तस्वीर 2017, मैरवा की है।

आज #ताजिया जुलूस निकलता है।लेकिन इस बार कोविड के कारण नहीं निकलेगा।
मैरवा में यह परंपरा है कि ताजिया जुलूस #शाही दरवाजे से होकर ही तब बभनौली ग्राम की ओर ले जाया जाता है।

इस तस्वीर में सफेद कुर्ते पजामे में मेरे आदरणीय पिताजी श्री #विजय प्रताप शाही ( #मंटू_शाही ) हैं।
ताजिया का जूलूस दरवाजे पर आता है।हमारे घर की महिलाएं और पुरूष ताजिया को प्रणाम करते हैं।
मैरवा में हिन्दू हो या मुसलमान सभी दरबार का सम्मान करते हैं।

#दुर्गा_पूजन का कोई अखाड़ा हो या #महावीरी_अखाड़ा हर अखाड़ा शाही दरबार से होकर ही जाता है और भगवान की मूर्ति को शाही मंदिर के बाहर रखकर फिर पूरा अखाड़ा दरवाजे पर आकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। उसके पश्चात यहा से आखिरी मूर्ति उठाई जाती है फिर झरही नदी में विसर्जन किया जाता है।
दुर्गा पूजन, शिवरात्रि तथा महावीरी पूजन पर शाही परिवार द्वारा मेले का आयोजन भी किया जाता रहा है।

यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

-ऋतुजा सिंह बघेल